Saturday 7 May 2011

ककहरे की त्रासदी


उस मरते हुए अक्षम कवि ने,
टूटने से पूर्व अंतिम सांस की सारी ऊर्जा बटोरकर,
दिया था सृष्टि को - समय को- और समाज को 
अपना सन्देश-
बुना था संकेताक्षरों से श्वेत पत्र पर,
अपने दर्शन का सम्पूर्ण परिवेश....


'क' जो नीले आकाश में उन्मुक्त उड़ते
धवल कबूतर के लिए था,
-स्वतन्त्रता की अमूर्त धारणा क़ा मूर्त उदहारण,
'ख' खिलौनों क़ा संकेत करता था,
और देश के औजारों व परिश्रम से जूझते बचपन में,
ताज़गी और उमंग भरता था.
और 'ग' गेहूं की कथा सुनाता था,
और इस प्रकार उस जर्जर कवि के
मृत्यु-पूर्व अधूरे बयान में देश के प्रति जिए गए
उसके सपनों क़ा हर रंग झिलमिलाता था. 


व्यवस्था ने,
'क़' से 'क़त्ल'
'ख' से 'खून' और
'ग' से 'गुलामी' अर्थ खींचकर 
इन निश्छल -निरपराध-निर्दोष अक्षरों का
आतंक इतना बढा दिया...
कि उस मर चुके कवि को देशद्रोही सिद्ध कर,
उसके जिंदा परिवार को फांसी पर चढ़ा दिया.


---तरुण प्रकाश

1 comment:

  1. मंगलवार 31/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    आप भी एक नज़र देखें
    धन्यवाद .... आभार ....

    ReplyDelete